Kheer Ganga : क्या है खीर गंगा का इतिहास, कैसे मिला उसे यह नाम?
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खीर गंगा (Kheer Ganga) है तो छोटी नदी, लेकिन इसका इतिहास उतना ही उथल-पुथल भरा है। 200 सालों से क्या हो रही इस नदी में, जानिए uplive24.com पर।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले (Cloudburst Uttarkashi) की एक शांत और सुरम्य घाटी धराली इन दिनों फिर से चर्चा में है। कारण है खीर गंगा (Kheer Ganga), एक नदी जो अपनी सुंदरता और निर्मल जल के लिए जानी जाती है, लेकिन इसके भीतर छिपा है एक रौद्र और विनाशकारी इतिहास। यह वही नदी है, जो भागीरथी (Bhagirathi) की एक प्रमुख सहायक है और हर कुछ वर्षों में अपने उग्र रूप से पहाड़ों को हिला देती है।
क्या है खीर गंगा का इतिहास? (History of Kheer Ganga)
खीर गंगा नदी (Kheer Ganga) की उत्पत्ति श्रीकंठ पर्वत के ग्लेशियरों से होती है। धराली (Dharali) गांव के पास यह भागीरथी से मिलती है। आमतौर पर यह नदी शांत रहती है, लेकिन मानसून के महीनों में यह बेकाबू हो जाती है और तबाही मचाती है।
इतिहासकारों के अनुसार, 19वीं सदी की शुरुआत में खीर गंगा (Kheer Ganga) में आई एक भीषण बाढ़ ने धराली में मौजूद 240 मंदिरों (Kedarkalp Temple Ruins) के समूह को मलबे में दफन कर दिया था। ये मंदिर कत्यूरी शैली में बने थे और अंग्रेज यात्री जेम्स विलियम फ्रेजर ने भी अपने यात्रा वृत्तांत में इनका उल्लेख किया है।
इसके बाद भी यह नदी कई बार अपना कहर दिखा चुकी है।
1835 की बाढ़ : इसे अब तक की सबसे विनाशकारी बाढ़ माना जाता है, जिसने पूरे धराली कस्बे को पट दिया था।
2013 और 2018 की बाढ़ें : भारी मलबे के साथ आई बाढ़ ने गंगोत्री हाइवे (Gangotri Highway) को क्षतिग्रस्त किया, कई घरों, होटलों और सेब के बागानों को नुकसान पहुंचाया और प्राचीन कल्पकेदार मंदिर का हिस्सा मलबे में दब गया।
क्यों आता है खीर गंगा (Kheer Ganga) में बार-बार बाढ़?
विशेषज्ञों का मानना है कि खीर गंगा का बहाव रास्ता ग्लेशियरों और घने जंगलों से होकर गुजरता है, जिससे इसका पानी बेहद शुद्ध होता है। इसी शुद्धता के कारण इसे ‘खीर गंगा’ (Kheer Ganga) कहा गया, क्योंकि इसमें अन्य नदियों की तरह चूना या खनिजों की अधिकता नहीं होती। लेकिन जब भारी वर्षा या बादल फटने जैसी घटनाएं होती हैं, तो यह नदी रफ्तार पकड़ लेती है और अपने साथ मलबा, बोल्डर और पानी का सैलाब नीचे ला देती है।
धराली समुद्र तल से लगभग 3100 मीटर की ऊंचाई पर है। इतनी ऊंचाई पर छोटी सी प्राकृतिक आपदा भी गंभीर हो जाती है।
धराली के आसपास की त्रासदियां
1700 ई. में गढ़वाल के परमार राजवंश के समय झाला में एक विशाल भूस्खलन हुआ था, जिससे 14 किलोमीटर लंबी झील बनी थी। आज भी भागीरथी का ठहरा हुआ बहाव इसका प्रमाण है।
1978 में धराली से 35 किलोमीटर नीचे डबराणी में एक डैम टूटने से बाढ़ आई थी, जिसने कई गांवों को बहा दिया।
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